तुम आ के थाम लो ना मुझे… सब ने छोर दिया है मुझे तुम्हारा समझ कर…
Tag: व्यंग्य
बहारों की चाह में
बहारों की चाह में गुजर जाती है यह ज़िंदगी, और कुछ फूल हंसके पतझड़ों में पलना सीख जाते हैं…
मेरे सीने में
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
अगर मेरी जिंदगी में
अगर मेरी जिंदगी में तुम नहीं हो, तो ये जिंदगी भी नहीं चाहिए मुझे !!
यहाँ दिल तो
यहाँ दिल तो बहुत मिलते है,मगर कोई दिल से नहीं मिलता !!
एक मुनासिब सा नाम
एक मुनासिब सा नाम रख दो तुम मेरा…..!! रोज जिदंगी पूछती हैं रिश्ता तेरा मेरा….!!
क्या क्या रंग दिखाती है
क्या क्या रंग दिखाती है जिंदगी क्या खूब इक्तेफ़ाक होता है, प्यार में ऊम्र नहीँ होती पर हर ऊम्र में प्यार होता है..
मँज़िलें बड़ी ज़िद्दी होती हैँ
मँज़िलें बड़ी ज़िद्दी होती हैँ , हासिल कहाँ नसीब से होती हैं ! मगर वहाँ तूफान भी हार जाते हैं , जहाँ कश्तियाँ ज़िद पर होती हैं !
अब ना करूँगा
अब ना करूँगा अपने दर्द को बया किसी के सामने, दर्द जब मुझको ही सहना है तो तमाशा क्यूँ करना…!!!
बड़ी मुश्किल से
बड़ी मुश्किल से सीखी थी बेईमानी हमने सब बेकार हो गयी, अभी तो पूरी तरह सीख भी ना पाए थे की सरकारें ईमानदार हो गयी..