अपनी पीठ से निकले

अपनी पीठ से निकले खंजरों को गिना जब मैंने,, ठीक उतने ही थे जितनों को गले लगाया था मैंने

तू कितनी भी

तू कितनी भी खूबसूरत क्यूँ ना हो ए ज़िंदगी, खुशमिजाज़ दोस्तों के बगैर तू अच्छी नहीं लगती।

नौकरी की चाहत में

नौकरी की चाहत में दिन भर जाने भटका होगा कैसे जिसके बटवे में रखने को कम गिनने को ज्यादा हैं

कुछ तो ऐसा भी करो

कुछ तो ऐसा भी करो कि प्यार उमडे बुजुर्गों में। करनी सही न हुई तो मांगने से दुआ कोई नहीं देगा।।

सारे मैखाने की शराब

पिला दे आज सारे मैखाने की शराब की बोतल ए साकी अगर ग़म-ए-यार भूल गया तो तेरा मैखाना ही खरीद लूंगा |

कागज़ की कतरनों को

कागज़ की कतरनों को भी कहते हैं लोग फूल रंगों का एतबार है क्या सूंघ के भी देख|

हम वहाँ हैं

हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी कुछ हमारी ख़बर नहीं आती|

सादगी जँचती नहीं

सादगी जँचती नहीं, हर किसी पे यहाँ, जलेबियाँ उलझी रहें, तो अच्छा है|

जान जब प्यारी थी

जान जब प्यारी थी, तब दुश्मन हज़ारों थे, अब मरने का शौक है, तो क़ातिल नहीं मिलते।

एक बच्चा खुश हुआ

एक बच्चा खुश हुआ खरीद कर गुब्बारा, दुसरा बच्चा खुश हुआ बेच कर गुब्बारा।

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