मैं बंद आंखों से

मैं बंद आंखों से उसको देखता हूं हमारे बीच में पर्दा नहीं है|

अभी इस तरफ़ न निगाह

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ.. मेरा लफ़्ज़-लफ़्ज़ हो आईना तुझे आईने में उतार लूँ…

होंठो पे अपने

होंठो पे अपने यूँ ना रखा करो तुम नादान कलम को, वरना नज़्म फिर नशीली होकर लड़खड़ाती रहेगी।

ये जो मुस्कराहट का

ये जो मुस्कराहट का लिबास पहना है मैंने… दरअसल खामोशियों को रफ़ू करवाया है मैंने…!!

जिन्दगीं में किसी का

जिन्दगीं में किसी का साथ काफी हैं, दूर हो या पास क्या फर्क पड़ता हैं, अनमोल रिश्तों का तो बस एहसास ही काफी हैं..!!!

तलब ये है कि

तलब ये है कि मैं सर रखूँ तेरे सीने पे और तमन्ना ये कि मेरा नाम पुकारे धड़कनें तेरी|

ख़्वाब में आ जाती है

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है

पूछ रही है

पूछ रही है आज मेरी हर शायरी मुझसे कहाँ गए वो दीवाने जो वाह वाह किया करते थे |

बेहद हदें पार की

बेहद हदें पार की थी हमने कभी किसी के लिए, आज उसी ने सिखा दिया हद में रहना….!!

ख्वाईश दो निवालों की

ख्वाईश दो निवालों की हमे बर्तन की हाजत क्या, फ़खिर अपनी हथेली को ही दस्तरख्वान कहते हैं.!

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