देखने का नजरिया सही होना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे स्कूल की पहली घंटी से नफरत होती है पर वही घंटी जब दिन की आखरी हो तो सबसे प्यारी लगती है…
Category: Urdu Shayri
इजहार करना नहीं आता
चलो माना की हमें प्यार का इजहार करना नहीं आता, जज़्बात ना समझ सको इतने नादान तो तुम भी नहीं.
तेरे काफ़िले मेँ
मुझे तेरे काफ़िले मेँ चलने का कोई शौक नहीँ. मगर तेरे साथ कोई और चले मुझे अच्छा नहीँ लगता
खाने पे टूट पड़े
खाने पे टूट पड़े सब , क्या ख़ास – क्या आम …. चालीसवा था जिसका,वो भुखमरी से मर गया …
उधार सा है…
कोई तो सूद चुकाये, कोई तो जिम्मा ले… उस इंकलाब का जो आज तक उधार सा है…
लहू बेच-बेच कर
लहू बेच-बेच कर जिसने परिवार को पाला, वो भूखा सो गया जब बच्चे कमाने वाले हो गए…!!
मोहब्बत बढ़ती जायेगी।
हमने कब माँगा है तुमसे वफाओं का सिलसिला; बस दर्द देते रहा करो, मोहब्बत बढ़ती जायेगी।
लोग मुन्तजिर थे
लोग मुन्तजिर थे, मुझे टूटता हुआ देखने के, और एक मैं था, कि ठोकरें खा खा कर पत्थर का हो गया
तुमने भी हमें
तुमने भी हमें बस एक दिये की तरह समझा था, रात गहरी हुई तो जला दिया सुबह हुई तो बुझा दिया..
तुम्हारी शातिर नजरे
तुम्हारी शातिर नजरे कत्ल करने में माहिर हैं, . . . तो सुन लो. हम भी मर-मर कर जीने में उस्ताद हो गये है।