कितनी है कातिल ज़िंदगी

कितनी है कातिल ज़िंदगी की ये आरज़ू, मर जाते हैं किसी पे लोग जीने के लिये।

कीसीने युं ही

कीसीने युंही पुछ लिया की दर्दकी किमत क्या है? हमने हंसते हुए कहा, पता कुछ अपने मुफ्त में दे जाते है।

अक्ल बारीक हुई

अक्ल बारीक हुई जाती है, रूह तारीक हुई जाती है।

फासले इस कदर

फासले इस कदर आज है रिश्तों में, जैसे कोई क़र्ज़ चुका रहा हो किश्तों में

एक ही चौखट पे

एक ही चौखट पे सर झुके तो सुकून मिलता है भटक जाते है वो लोग जिनके हजारों खुदा होते है।

हमारे बिन अधूरे तुम

हमारे बिन अधूरे तुम रहोगे, कभी चाहा था किसी ने,तुम ये खुद कहोगे..

अगर मालूम होता

अगर मालूम होता की इतना तडपता है इश्क, तो दिल जोड़ने से पहले हाथ जोड़ लेते..

हो सके तो

हो सके तो दिलों में रहना सीखो, गुरुर में तो हर कोई रहता है…

न रुकी वक्त की गर्दिश

न रुकी वक्त की गर्दिश और न जमाना बदला, पेड़ सुखा तो परिंदों ने ठिकाना बदला !!

सियाही फैल गयी

सियाही फैल गयी पहले, फिर लफ्ज़ गले, और एक एक कर के डूब गए..

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