फिर वो बहुत संभल कर

फिर वो बहुत संभल कर बोलता रहा … किसी ने मेरा ज़िक्र कर दिया था …

तेरे होंटो से

तेरे होंटो से मेरे होंट लगे रहे इस क़दर सिगरेट खुदखुशी कर ले जलन के मारे|

इसी बात ने

इसी बात ने उसे शक में डाल दिया हो शायद, इतनी मोहब्बत, उफ्फ…कोई मतलबी ही होगा।।

डर लगता है

डर लगता है कहीं अकेला ना हो ज़ाऊ… इसलिये तेरी याद को साथ लिये चलता हूँ …!

लफ़्ज़ों को कम

लफ़्ज़ों को कम ना आँका किजिए साहब… चंद जो इक्कठे हो जाए तो ‘शेर’ हो जाते हैं… !!

किसी सूफ़ी की ग़ज़ल

किसी सूफ़ी की ग़ज़ल का शेर हूँ मैं दोस्तो, बेखुदी के रास्ते दिल मे उतर जाता हूँ…!!

तुम कभी कभी

तुम कभी कभी गुस्सा कर लिया करो मुझसेयकीन हो जाता है कि अपना तो समझते हो |

दर्द आसानी से

दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला , आँख का तिनका बहुत आँख मसल कर निकला..

लौटा जो सज़ा काट के

लौटा जो सज़ा काट के, वो बिना ज़ुर्म की साहब घर आ के उसने, सारे परिंदे रिहा कर दिए….

कोई सुलह करादे

कोई सुलह करादे जिंदगी की उलझनों से, बडी़ तलब लगी है आज मुसकुराने की….

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