यूँ उम्र कटी

यूँ उम्र कटी दो अल्फ़ाज़ में… एक ‘काश’ में एक ‘आस’ में…

जिन्हें पता है

जिन्हें पता है अकेलापन क्या है…. वो दूसरे के लिए हमेशा हाजिर रहते है !!

तुम जो पर्दे में

तुम जो पर्दे में सँवरते हो नतीजा क्या है लुत्फ़ जब था कि कोई देखने वाला होता |

ये इश्क का खेल ही

ये इश्क का खेल ही कुछ ऐसा है यारो कि… दिमाग कहता है मारा जायेगा लेकिन दिल कहता है देखा जाएगा..

मैंने तो माँगा था

मैंने तो माँगा था थोड़ा सा उजाला अपनी जिंदगी में , वाह रे चाहने वाले तूने तो आग ही लगा दी जिंदगी में !!

गिन लेती है

गिन लेती है दिन बगैर मेरे गुजारे हैं कितने, भला कैसे कह दूं, कि माँ अनपढ़ है मेरी…

मैं कोशिश करता हुँ

मैं कोशिश करता हुँ कि पूरे दिन काम कर के इतना थक जाऊँ.. की बिस्तर पर जातें हीं नींद आ जाए ना की तेरी याद…

वो मुझे ज़िन्दा देख कर

वो मुझे ज़िन्दा देख कर बोली,,, कि तुझे बददुआ नही लगती है क्या…

फिर वहीं लौट के

फिर वहीं लौट के जाना होगा यार ने कैसी रिहाई दी है..!!

रात बाकी थी

रात बाकी थी जब वो बिछड़ी थी.. ज़िन्दगी गुज़र गयी रात बाकी है.!!

Exit mobile version