हर बार मैं

हर बार मैं ही गलत होता हूँ यह तेरी इक ग़लतफ़हमी है|

रूह में ज़िंदा है

रूह में ज़िंदा है अब तक, मखमली एहसास तेरा आहिस्ता साँसे लेता हूँ, यूँ कहीं बिखर ना जाये…

अपनी मंज़िल पे

अपनी मंज़िल पे पहुंचना और खड़े रहना भी, कितना मुश्किल है बड़े होकर बड़े रहना भी ..!!

पा सकेंगे न उम्र भर

पा सकेंगे न उम्र भर जिस को जुस्तुजू आज भी उसी की है|

जी चाहता है

जी चाहता है देखा करू तुझ को बार बार जी भरता नही है मेरा इक बार देख कर

कैसे नादान है

कैसे नादान है हम लोग .. दुख आता है तो अटक जाते है । सुख आता है तो भटक जाते है ।

तमाम रात तेरे

तमाम रात तेरे मय-कदे में मय पी है, तमाम उम्र नशे में निकल न जाए कहीं…

ये सोचना ग़लत है

ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं, मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं।

लफ़्ज़ों में बयाँ करूँ

लफ़्ज़ों में बयाँ करूँ जो तुम्हे , इक लफ्ज़ मुहब्बत ही काफी है|

दौर वह आया है

दौर वह आया है, कि कातिल की सज़ा कोई नहीं , हर सज़ा उसके लिए है, जिसकी खता कोई नहीं|

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