क्यूँ बदलते हो

क्यूँ बदलते हो अपनी फितरत को ए मौसम, इन्सानों सी। तुम तो रहते हो रब के पास फिर कैसे हवा लगी जमाने की।।।

ताल्लुकात खुद से

ताल्लुकात खुद से जब बढती जाती है कम होती जाती हैं शिकायतें दुनिया से…

अजब रंग समेटे हैं

कितने अजब रंग समेटे हैं ये बेमौसम बारिश ने. . . . नेता पकौड़े खाने की सोच रहा है तो किसान जहर

जो खुद को

जो खुद को मैं कभी मिल गया होता.. मेरे जिक्र से ये जमाना हिल गया होता…

इन्सान कम थे क्या

इन्सान कम थे क्या.. जो अब मोसम भी धोखा देने लगे..

वाह रे खुदा

वाह रे खुदा तेरे बनाये बंदो की फितरत पर रोना आया मुझे तो खिलौनो से खेलने का शौंक था, उसने मुझे ही खिलौना बनाया……….

टूटे हुए प्याले में

टूटे हुए प्याले में जाम नहीं आता इश्क़ में मरीज को आराम नहीं आता ऐ मालिक बारिश करने से पहले ये सोच तो लिया होता के भीगा हुआ गेहू किसी काम नहीं आता

दर्द से शिकवा नहीं

मुझे दर्द से शिकवा नहीं है ए खुदा… बस दर्द में मुस्कुराने की अदा मुझे बख्शते रहना…॥

याद करके सोता हूँ

ये सोचाकर रात में सब को याद करके सोता हूँ… ना जाने कौन सी रात जीवन की आखरी रात हो॥

मेरी मोहब्बत से

इतनी नफरत थी उसे मेरी मोहब्बत से , उसने हाथ जला डाले,मुझे तक़दीर से मिटाने के लिए.

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