मैं अपनी ज़ात में

मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ ग़म-ए-हयात से कह दो ख़रीद लाये मुझे|

लम्हों मे खता की

लम्हों मे खता की है सदियों की सज़ा पाई|

ये भी तो सज़ा है

ये भी तो सज़ा है कि गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ क्यूँ लोग मोहब्बत की सज़ा ढूँढ रहे हैं|

है ये बस्ती

है ये बस्ती तिरे भीगे हुए कपड़ों की तरह तेरे इस्नान-सा लगता है ये बरसात का रंग

हाथ मिलते ही

हाथ मिलते ही उतर आया मेरे हाथों में कितना कच्चा है मिरे दोस्त तिरे हाथ का रंग |

यूँ तो मुझे

यूँ तो मुझे किसी के भी छोड़ जाने का गम नहीं बस, कोई ऐसा था जिससे ये उम्मीद नहीं थी..

तकलीफों ने ऐसा

तकलीफों ने ऐसा तराशा है मुझको… हर गम के बाद ज्यादा चमकता हूँ..

वक्त इंसान पे

वक्त इंसान पे ऐसा भी कभी आता है . राह में छोड़ के साया भी चला जाता हैवक्त इंसान पे ऐसा भी कभी आता है . राह में छोड़ के साया भी चला जाता है|

है कोई रंग जो हो

है कोई रंग जो हो इश्क़े-ख़ुदा से बेहतर अपने आपे में चढ़ा लो उसी इक ज़ात का रंग |

भुख लोरी गा गा कर

भुख लोरी गा गा कर, . जमीर को सुलाये रखती हैं…….

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