वो हैं के वफ़ाओं में

वो हैं के वफ़ाओं में खता ढूँढ रहे हैं, हम हैं के खताओं में वफ़ा ढूँढ रहे हैं।

बहुत ढूंढने पर

बहुत ढूंढने पर भी अब शब्द नही मिलते अक्सर…. अहसासों को शायद पनाह क़लम की अब गंवारा नही…

जिसके बगैर एक

जिसके बगैर एक पल भी गुज़ारा नही होता सितम देखिये वही शख्स हमारा नही होता

कमाल हासिल है

हमको कमाल हासिल है ग़म से खुशियाँ निचोड़ लेते हैं|

परिंदे उनकी छत पर

परिंदे उनकी छत पर बैठे हैं बिन दाने के बिन पानी के हमने तो बड़े चर्चे सुने थे उनकी मेहरबानी के….

जब हम लिखेंगे

जब हम लिखेंगे दास्तान-ए-जिदंगी तो, सबसे अहम किरदार तुम्हारा ही होगा..

दो लफ्ज़ उनको

दो लफ्ज़ उनको सुनाने के लिए, हज़ारों लफ्ज़ लिखे ज़माने के लिए

ना जाने क्यों

ना जाने क्यों रेत की तरह निकल जाते है हाथों से ‘वो लोग ‘ ,जिन्हें जिन्दगी समझ कर हम कभी खोना नही चाहते…..!!!!!

हमारे दिल में भी

हमारे दिल में भी झांको अगर मिले फुरसत… हम अपने चेहरे से इतने नज़र नहीं आते…

खुद से भी मिल न सको

खुद से भी मिल न सको, इतने पास मत होना इश्क़ तो करना, मगर देवदास मत होना…!

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