मुंह खोल कर

मुंह खोल कर तो हंस देता हूँ मैं आज भी साहब, दिल खोल कर हंसे मुझे ज़माने गुज़र गए

होता है अगर

होता है अगर तो होने दो, मेरे क़त्ल का सौदा,मालूम तो हो, बाज़ार में क्या कीमत* है मेरी..

लतीफे छेड़ कर मैं

लतीफे छेड़ कर मैं अपनी माँ को जब हंसाता हूँ मुझे महसूस होता है कि जन्नत मुस्कुराती है

टपकती है निगाहों से

टपकती है निगाहों से, बरसती है अदाओं से, कौन कहता है मोहब्बत पहचानी नहीं जाती|

सब्र तहज़ीब है

सब्र तहज़ीब है मुहब्बत की और तुम समझते रहे बेज़ुबान हैं हम

मैंने कब तुम से

मैंने कब तुम से मुलाकात का वादा चाहा, मैंने दूर रहकर भी तुम्हें हद से ज्यादा चाहा..

जो निखर कर

जो निखर कर बिखर जाये वो “कर्तव्य”है…! और जो बिखर कर निखर जाए वो “व्यक्तित्व” हैं…!

ज्यादा कुछ नही

ज्यादा कुछ नही बदला उम्र बढ़ने के साथ… बचपन की जिद समझौतों में बदल गयी…!!

तेरा हाथ छूट जाने से

तेरा हाथ छूट जाने से डरता हूँ मैं दिल के टूट जाने से डरता हूँ|

बुलंदी तक पहुंचना

बुलंदी तक पहुंचना चाहता हूँ मै भी… पर गलत राहो से होकर जाऊ.. इतनी जल्दी भी नही..!!

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