ज़ख्म ख़ुद सारी कहानी

ज़ख्म ख़ुद सारी कहानी कह रहे हैं ज़ुल्म की, क्या करें फिर भी अदालत को गवाही चाहिए…

जिंदगी से यही गिला है

जिंदगी से यही गिला है मुझे , वो बहुत देर से मिला है मुझे ..

भांप ही लेंगे

भांप ही लेंगे, इशारा सरे महफ़िल जो किया…..! ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं….

कितने चालाक है

कितने चालाक है कुछ मेरे अपने भी … उन्होंने तोहफे में घड़ी तो दी … मगर कभी वक़्त नही दिया…!!!

अच्छा हैं आँखों पर

अच्छा हैं आँखों पर पलकों का कफ़न हैं.. वर्ना तो इन आँखों में बहुत कुछ दफन हैं.!

उम्मीद वफ़ा की

उम्मीद वफ़ा की,और तमन्ना जिस्म की इन पढ़े-लिखों की मोहब्बत से तो, मैं गवांर ही अच्छा हूं|

वो लोग अपने आप में

वो लोग अपने आप में कितने अज़ीम थे जो अपने दुश्मनों से भी नफ़रत न कर सके

दो गज़ ज़मीन नसीब हो गयी

दो गज़ ज़मीन नसीब हो गयी यही बहुत है, सिकंदरो को अब जहान सारा मुबारक हो|

हर रात मैं लिखूं….

हर रात मैं लिखूं…. ज़रूरी तो नहीं…. कभी-कभी लफ्ज़ भी सोया करते है…

पहले मन पर काम करो

पहले मन पर काम करो और फिर तन पर काम करो इसके बाद जो वक़्त बचे उसमें धन पर काम करो|

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