उलझनों और कश्मकश में.. उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ.. ए जिंदगी! तेरी हर चाल के लिए.. मैं दो चाल लिए बैठा हूँ | लुत्फ़ उठा रहा हूँ मैं भी आँख – मिचोली का … मिलेगी कामयाबी, हौसला कमाल का लिए बैठा हूँ l चल मान लिया.. दो-चार दिन नहीं मेरे मुताबिक.. ये गहराइयां, ये… Continue reading उलझनों और कश्मकश में
Category: व्यंग्य शायरी
कुछ शब्द हि
कुछ शब्द हि तो थी ये जिन्दगी मेरी ..तूने साथ मिलकर कहानी बना दी …!!
मैं फिर से
मैं फिर से निकलूँगा तलाशने को मेरी जिंदगी में खुशियाँ यारो दुआ करना इस बार किसी से मोहब्बत न हो..!!
सूरज ढला तो
सूरज ढला तो कद से ऊँचे हो गए साये. कभी पैरों से रौंदी थी यहीँ परछाइयां हमने।
आंधी भी कभी
कभी तिनके कभी पत्ते कभी खुंश्बू उडा लाई, हमारे घर तो आंधी भी कभी तनहा नहीं आई
माना के प्यार
माना के प्यार ख़रीदा नहीं जाता दोस्तों, लेकिन उसकी कीमत जरुर चुकानी पड़ती है.
धोखा मिला जब
धोखा मिला जब प्यार में; ज़िंदगी में उदासी छा गयी; सोचा था छोड़ दें इस राह को; कम्बख़त मोहल्ले में दूसरी आ गयी!
हर गुनाह कबूल है
हर गुनाह कबूल है हमें, बस सजा देने वाला बेवफा न हो
यूँही भुला देते
यूँही भुला देते हो हद करते हो, इंसान हु तुम्हारी किताबों का सबक़ तो नहीं..
मत पूछो कि मै अल्फाज
मत पूछो कि मै अल्फाज कहाँ से लाता हूँ ये उसकी यादो का खजाना है बस लुटाऐ जा रहा हूँ..