उसके रूठने की अदायें

उफ्फ़ .. !! उसके रूठने की अदायें भी,क्या गज़ब की है … बात-बात पर ये कहना , सोंच लो.. फ़िर मैं बात नही करूंगी ….!!!

वक़्त लगता है

रात लिखी है , दिन पढ़ा है…. वक़्त लगता है , जज़्बातों को अल्फ़ाज़ अता होने मे..

छूटा घर मेरा मुझसे

इस तरह छूटा घर मेरा मुझसे… मैं घर अपने आकर,अपना घर ढूँढता रहा…

नजर झुका के

नजर झुका के जब भी वो,गुजरे है करीब से…. हम ने समझ लिया की आज का आदाब अर्ज हो गया…

तेरी यादो की उल्फ़त

तेरी यादो की उल्फ़त से सजी हे महफिल मेरी… में पागल नही हूँ जो तुझे भूल कर वीरान हो जाऊ…

हमारा भी खयाल कीजिये

हमारा भी खयाल कीजिये कही मर ही ना जाये हम, बहुत ज़हरीली हो चुकी है अब ये खामोशीयां आपकी..

उनके रूठ जाने में

उनके रूठ जाने में भी एक राज़ है साहब, वो रूठते ही इसलिए है की कहीं अदायें न भूल जाएं।।

अब यादें हैं …

कुछ ख़्वाब देखे …. फिर ख्वाहिशें बनी … अब यादें हैं …!!

आपने तीर चलाया

आपने ने तीर चलाया तो कोई बात ना थी, और हमने जखम दीखाये तो बुरा मान गए….!!

तेरे साथ मरना चाहते है

मरते होंगे लाखों तुझ पर हम तो तेरे साथ मरना चाहते है !!

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