मेरे लफ़्ज़ों को अब

मेरे लफ़्ज़ों को अब भी नशा है तुम्हारा … निकल कर ज़हन से, कागज़ों पर गिर पड़ते हैं …

कुछ बाते उससे छुपायीं थी

कुछ बाते उससे छुपायीं थी … और कुछ कागज़ों को बतायीं थी …

कहीं तुम भी

कहीं तुम भी न बन जाना किरदार किसी किताब का लोग बड़े शौक से पड़ते है कहानिया बेवफाओं की….

आज आशिक़ों की

आज आशिक़ों की महफ़िल एक साथ बैठी है..!! पता नई कितनो का दिल तोड़ेगी…

तेरी गली का सफर

तेरी गली का सफर आज भी याद है मुझे.. मैं कोई वैज्ञानिक नही था, पर मेरी “खोज” लाजवाब थी…

मुझे ऐसा मरना है

मुझे ऐसा मरना है जैसे, लिखते लिखते स्याही खत्म हो जाये…

मुझे छोड़ के जिसके लिए

मुझे छोड़ के जिसके लिए गई थी तुम., सुना है हर बात पर तुम उसे मेरी मिसाल देती हो|

या तो ख़रीद लो

या तो ख़रीद लो या ख़ारिज कर दो, ये सहूलियत के हिसाब से किराये पर मत लिया करो मुझे..

रात को कह दो

रात को कह दो, कि जरा धीरे से गुजरे, काफी मिन्नतों के बाद आज दर्द सो रहा है |

लफ़्ज़ों का लहू निकलता है

ना लफ़्ज़ों का लहू निकलता है ना किताबें बोल पाती हैं, मेरे दर्द के दो ही गवाह थे और दोनों ही बेजुबां निकले…

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