क्यूँ तुम नज़र में न

क्यूँ तुम नज़र में नहीं पर दिल में हो? आँखों से शायद बह गया तुम्हारा वजूद …

सुनकर ज़माने की

सुनकर ज़माने की बातें तू अपनी अदा मत बदल, यकीं रख अपने खुदा पर यूँ बार बार खुदा मत बदल……

कितनी मासूम सी है

कितनी मासूम सी है ख्वाहिस आज मेरी, कि नाम अपना तेरी आवाज़ से सुनूँ !!

मैं तुझे चाहकर भी

मैं तुझे चाहकर भी अपना न बना सका, जब मरना चाहा तो तेरी यादों ने मरने भी न दिया |

जन्नत मैं सब कुछ हैं

जन्नत मैं सब कुछ हैं मगर मौत नहीं हैं .. धार्मिक किताबों मैं सब कुछ हैं मगर झूट नहीं हैं दुनिया मैं सब कुछ हैं लेकिन सुकून नहीं हैं इंसान मैं सब कुछ हैं मगर सब्र नहीं हैं|

हँसी यूँ ही नहीं आई है

हँसी यूँ ही नहीं आई है इस ख़ामोश चेहरे पर…..कई ज़ख्मों को सीने में दबाकर रख दिया हमने

उन चराग़ों में

उन चराग़ों में तेल ही कम था क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे|

मनाने की कोशिश

मनाने की कोशिश तो बहुत की हमनें…पर जब वो हमारे लफ़्ज ना समझ सके.. तो हमारी खामोशियों को क्या समझेंगे|

ताल्लुक़ कौन रखता है

ताल्लुक़ कौन रखता है किसी नाकाम से…! लेकिन, मिले जो कामयाबी सारे रिश्ते बोल पड़ते हैं…! मेरी खूबी पे रहते हैं यहां, अहल-ए-ज़बां ख़ामोश…! मेरे ऐबों पे चर्चा हो तो, गूंगे बोल पड़ते हैं…!!

जो भी आता है

जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज बट न जाए तिरा बीमार मसीहाओं में

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