मंजिल पर पहुंचकर लिखूंगा मैं इन रास्तों की मुश्किलों का जिक्र, अभी तो बस आगे बढ़ने से ही फुरसत नही..
Category: प्रेणास्पद शायरी
इश्क़ के क़ाबिल
हम ही उस के इश्क़ के क़ाबिल न थे क्यूँ किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिए |
जाने किस किस को
जाने किस किस को लूटा है इस चोर ने मसीहा बनकर, के आओ सब मिलकर इश्क पे मुकदमा कर दें..
नाराजगी चाहे कितनी भी
नाराजगी चाहे कितनी भी क्यो न हो तुमसे तुम्हें छोड़ देने का ख्याल हम आज भी नही रखते |
ज़मीं पर आओ
ज़मीं पर आओ फिर देखो हमारी अहमियत क्या है बुलंदी से कभी ज़र्रों का अंदाज़ा नहीं होता|
अब ना कोई शिकवा
अब ना कोई शिकवा,ना गिला,ना कोई मलाल रहा.सितम तेरे भी बेहिसाब रहे, सब्र मेरा भी कमाल रहा!!
मैं तो मोम था
मैं तो मोम था इक आंच में पिघल जाता… तेरा सुलूक़ मुझे पत्थरों में ढाल गया….
दिल की बस्ती
दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है ,जो भी गुजरा है उसने लूटा है|
दर्द का क्या है
दर्द का क्या है, जरूरी नहीं चोट लगने पर होता है। दर्द वहाँ अक्सर दिखता है, जहाँ दिल में अपनापन होता है।।
तुम बस अपने दिल को
तुम बस अपने दिल को संभालो साहब … कहीं मेरे अल्फ़ाज़ तुम्हें दिल का मरीज़ ना बना लें…