धूप बर्दाश्त करना सीख़ लो

अब ये धूप बर्दाश्त करना सीख़ लो .. अब वो जुल्फे गैर हवाओं में लहराने लगी है..

तुम रख ही ना सकीं

तुम रख ही ना सकीं मेरा तोफहा सम्भालकर मैंने दी थी तुम्हे,जिस्म से रूह निकालकर|

तेरी निगाहों से वास्ता

जब से पड़ा है तेरी निगाहों से वास्ता, नींद नहीं आती मुझे सितारों से पूँछ लो!

फासलों से अगर

फासलों से अगर.. मुस्कुराहट लौट आये तुम्हारी… तो तुम्हे हक़ है.. कि तुम… दूरियां बना लो मुझसे….

आंखें भी खोलनी पड़ती हैं

आंखें भी खोलनी पड़ती हैं उजाले के लिए… सूरज के निकलने से ही अँधेरा नहीं जाता….

तुम्हारे वक्त से है

मेरी नाराज़गी तुमसे नहीं, तुम्हारे वक्त से है, जो तुम्हारे पास मेरे लिए नहीं है..

अपनों के बीच

अपनों के बीच, गैरो की याद नहीं आती। और गैरो के बीच, कुछ अपने याद आते हैं।

याद कयामत की तरह है

मेरी याद कयामत की तरह है.. याद रखना..आएगी जरूर..

ज़ख़्मों की दवात में

सूखने लगी है….स्याही शायद,ज़ख़्मों की दवात में… वरना वो भी दिन थे,दर्द रिसता था धीरे-धीरे !

तुझे उस्ताद मानूँ!

चित्रकार तुझे उस्ताद मानूँ!, दर्द भी खींच मेरी तस्वीर के साथ..

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