उस मोड़ से शुरू करें चलो फिर से जिंदगी हर शय हो जहाँ नई सी और हम हो अज़नबी
Category: व्यंग्य शायरी
बचपन बड़ा होकर
बचपन — बड़ा होकर पायलट बनूँगा, डॉक्टर बनूँगा या इंजीनियर बनूँगा…. जवानी — “अरे भाई वो चपरासी वाला फॉर्म निकला की नही अभी तक
तेरा ऐ दिल
माफी चाहता हूँ गुनेहगार हूँ तेरा ऐ दिल, तुझे उसके हवाले किया जिसे तेरी कदर नहीं
ढूंढ रहे हो
कमियां तो पहले भी थीं मुझमें.. अब जो बहाना ढूंढ रहे हो तो वो अलग बात है.. !!
यह समझ पाओ
किसी मासूम बच्चे की तबस्सुम मेँ उतर जाओ, तो शायद यह समझ पाओ खुदा ऐसा भी होता है…
ऐ दिल मुझसे
ऐ दिल मुझसे बहस ना कर अब चुप भी हो जा,, उसके बिना साल गुजर गया दिसंबर और गुज़र जाने दे
मस्जिद की मीनारें बोलीं
मस्जिद की मीनारें बोलीं, मंदिर के कंगूरों से . संभव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से
इश्क में सिक्का
इश्क में सिक्का,, जब भी उछाला.. जीत मेरी ही हुई इस तरफ …आप …”ख्वाब” से थे उस तरफ.. ख्वाब . .”आप” से थे.!
दो चार नही
दो चार नही मुझे बस एक ही दिखा दो, वो शख्स जो अंदर से भी बाहर जैसा हो…….
कलम में जोर
कलम में जोर जितना है जुदाई की बदौलत है, मिलने के बाद लिखने वाले लिखना छोड़ देते है……..