क्या ज़रूरत थीं

हुआ था शोर पिछली रात को……दो “चाँद” निकले हैं, बताओ क्या ज़रूरत थीं “तुम्हे” छत पर टहलने की

जैसे किसी उलझन से

बड़े सुकून से वो रहता है आज कल मेरे बिना, जैसे किसी उलझन से छुटकारा मिल गया हो उसे…

तेरी आवाज से

कोई ऐसी सुबह भी मिले मुझे, के मेरी आँख खुले तेरी आवाज से..

तालाबों पर चौकीदारी

जो तालाबों पर चौकीदारी करते हैँ… वो समन्दरों पर राज नहीं कर सकते..!!!

समन्दर नहीं सूखा करते

बस यही सोच कर हर मुश्किलों से लड़ता आया हूँ…! धूप कितनी भी तेज़ हो समन्दर नहीं सूखा करते…।।

निगाहों में समाए हो

एक मुद्दत से तुम निगाहों में समाए हो…! एक मुद्दत से हम होंश में नहीं हैं ..!!

कभी कुछ घाव

कभी कभी कुछ घाव खुद कि खरोंचों के होते है..

वो जज़्बात थे

कागज़ पर उतारे कुछ लफ्ज़, ना खामखा थे.. ना फ़िज़ूल थे.. ये वो जज़्बात थे.. लब जिन्हें कह ना पाएं थे कभी…!!

ज़िद्दी सा होना चाहिए

ख्वाहिश भले छोटी सी हो लेकिन…उसे पूरा करने के लिए  दिल ज़िद्दी सा होना चाहिए..

गुरुर ने खो दी।

मुड़कर नहीं देखता अलविदा के बाद , कई मुलाकातें बस इसी गुरुर ने खो दी।

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