कोई मरहम लगाने वाला

कोई मरहम लगाने वाला नहीं था … और जख्म जल्दी भर गये ..

बहुत ढूंढने पर

बहुत ढूंढने पर भी अब शब्द नही मिलते अक्सर…. अहसासों को शायद पनाह क़लम की अब गंवारा नही…

कमाल हासिल है

हमको कमाल हासिल है ग़म से खुशियाँ निचोड़ लेते हैं|

छूते रहे वो

छूते रहे वो दिल मेरा गज़ल की आग से, जलते रहे हम रातभर शायर की बात से|

परिंदे उनकी छत पर

परिंदे उनकी छत पर बैठे हैं बिन दाने के बिन पानी के हमने तो बड़े चर्चे सुने थे उनकी मेहरबानी के….

एक तरफा ही

एक तरफा ही सही…प्यार तो प्यार है…, उसे हो ना हो…लेकिन मुझे बेशुमार है…!

जब हम लिखेंगे

जब हम लिखेंगे दास्तान-ए-जिदंगी तो, सबसे अहम किरदार तुम्हारा ही होगा..

लफ़्ज़ों पे वज़न

लफ़्ज़ों पे वज़न रखने से नहीं झुकते मोहब्बत के पलड़े साहिब हलके से इशारे पे ही,, ज़िंदगियां क़ुर्बान हो जाती हैं|

दो लफ्ज़ उनको

दो लफ्ज़ उनको सुनाने के लिए, हज़ारों लफ्ज़ लिखे ज़माने के लिए

हमारे दिल में भी

हमारे दिल में भी झांको अगर मिले फुरसत… हम अपने चेहरे से इतने नज़र नहीं आते…

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