बहुत पानी बरसता है

बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है

यही मौसम था जब छत पर टहलते थे
यही मौसम है अब सीने में सर्दी बैठ जाती है

चलो माना कि शहनाई मोहब्बत की निशानी है
मगर वो शख़्स जिसकी आ के बेटी बैठ जाती है

बढ़े बूढ़े कुएँ में नेकियाँ क्यों फेंक आते हैं ?
कुएँ में छुप के क्यों आख़िर ये नेकी बैठ जाती है ?

सियासत नफ़रतों का ज़ख्म भरने ही नहीं देती
जहाँ भरने पे आता है तो मक्खी बैठ जाती है

वो दुश्मन ही सही आवाज़ दे उसको मोहब्बत से
सलीक़े से बिठा कर देख हड्डी बैठ जाती है.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version