इश्क था इसलिए

इश्क था इसलिए सिर्फ तुझसे किया, फ़रेब होता तो सबसे किया होता|

परिन्दों की फ़ितरत से

परिन्दों की फ़ितरत से आए थे वो मेरे दिल में। ज़रा पंख निकल आए तो आशियाना छोड दिया॥

न तो धन छुपता है

न तो धन छुपता है न मोहब्बत , जाहिर हो ही जाता है छुपाते – छुपाते

तुम्हारी नाराजगी बहुत

तुम्हारी नाराजगी बहुत वाजिब है… मै भी खुद से खुश नहीं हूँ !

रूक गया है

रूक गया है आसमां मेँ चाँद चलते चलते . . . . तुमको अब छत से उतरना चाहिए . . . .

दिल को जो मेरे ले गया

दिल को जो मेरे ले गया, उसकी तलाश क्या करूँ जिसने चुराया दिल मेरा, वो तो मेरी नज़र में है|

चुप तुम थे

चुप तुम थे चुप हम भी रहे ना जाने कैसे ये किस्सा आम हो गया……………..

तुम मिल जाओ…

तुम मिल जाओ…..निजात मिल जाये, रोज़ जीने से……………..रोज़ मरने से..!!

तुझ को देखे

तुझ को देखे बिना करार ना था, एक ऐसा भी……वक्त गुजरा है..!!

एक जरा जायके में

एक जरा जायके में कडवा है, वरना सच का कोई जबाब नहीं.!!

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