कौन कमबख़्त चाहता है

कौन कमबख़्त चाहता है सुधर जाना हमारी ख़्वाहिश तुम्हारी लतों में शुमार हो जाना !

ज़मीं से हमें आसमाँ पर

ज़मीं से हमें आसमाँ पर बिठा के गिरा तो न दोगे अगर हम ये पूछें कि दिल में बसा के भुला तो न दोगे|

ये मशवरा है

ये मशवरा है कि पत्थर बना के रख दिल को ये आईना ही रहा तो जरूर टूटेगा

हमने आज खुद को

हमने आज खुद को आज़माने की कोशिश की, मोहब्बत से दिल को बचाने की कोशिश की.

दिल दुखाती थी

दिल दुखाती थी जो पहले अब रास आने लगी है अब उदासी रफ़्ता-रफ़्ता दिल को भाने लगी है…!!

हैं तो रिमझिम..

हैं तो रिमझिम.. फुहार से… जनाब की यादें.. मगर मूसलाधार हैं…

याद कर लेना मुझे

याद कर लेना मुझे तुम कोई भी जब पास न हो चले आएंगे इक आवाज़ में भले हम ख़ास न हों..

हम दिलफेक आशिक़ है

हम दिलफेक आशिक़ है, हर काम में कमाल कर दे क्या जरुरत है जानू को लिपस्टिक लगाने की हम चूम के ही होंठ उसके लाल कर दे

रात तो इसी कशमकश

रात तो इसी कशमकश में गुजर जाएगी…. तेरी याद जाएगी तभी शायद नींद आएगी।

सारी महफ़िल लगी हुई थी

सारी महफ़िल लगी हुई थी हुस्न ए यार की तारीफ़ में, हम चुप बैठे थे क्यूंकि हम तो उनकी सादगी पर मरते है !!

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