चल आ तेरे पैरो पर

चल आ तेरे पैरो पर मरहम लगा दूं ऐ मुक़द्दर. कुछ चोटे तुझे भी तो आई ही होगी, मेरे सपनो को ठोकर मारते मारते !

न जाने किसने

न जाने किसने, पढ़ी है मेरे हक़ में दुआ… आज तबियत में जरा आराम सा है…

फ़रार हो गई होती

फ़रार हो गई होती कभी की रूह मेरी ! बस एक जिस्म का एहसास रोक लेता है !!

तू जादू हैं

तू जादू हैं तो कोई शक नहीं हैं मै पागल हूँ तो होना चाहिए था.!

एक तू और एक वक्त

एक तू और एक वक्त, अफ़सोस की दोनों ही बदल गए

हमको अब उनका…

हमको अब उनका…. वास्ता ना दीजिए …. हमारा अब उनसे…. वास्ता नहीं…

जाता हुआ मौसम लौटकर

जाता हुआ मौसम लौटकर आया है. …. काश वो भी कोशिश करके देखे…!!

बस ये कहकर

बस ये कहकर टाँके लगा दिये उस हकीम ने..कि जो अंदर बिखरा है उसे खुदा भी नहीं समेट सकता..!!

आज फिर मुमकिन नही

आज फिर मुमकिन नही कि मैं सो जाऊँ… यादें फिर बहुत आ रही हैं नींदें उड़ाने वाली

उसने अपने दिल के

उसने अपने दिल के अंदर जब से नफरत पाली है। ऊपर ऊपर रौब झलकता अंदर खाली खाली है।।

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