मिटटी महबूबा सी

मिटटी महबूबा सी नजर आती है गले लगाता हूँ तो महक जाती है ।।

लहरों की ज़िद पर

लहरों की ज़िद पर क्यों अपनी शक़्ल बदल लेतीं है , दिल जैसा कुछ होता होगा शायद इन चट्टानों में।

कई आँखों में

कई आँखों में रहती है कई बांहें बदलती है, मुहब्बत भी सियासत की तरह राहें बदलती है|

वो मोहब्बत थी

वो मोहब्बत थी इसलिए ही जाने दिया…अगर जिद होती तो अब तक बांहो में होती…

उस तस्वीर का

उस तस्वीर का एक हिस्सा खो गया मुझसे, जिस तस्वीर में उस का हाथ था मेरे हाथ में.!!

कुछ लोग मुझे

कुछ लोग मुझे अपना कहा करते थे, सच कहूँ वो सिर्फ कहाँ ही करते थे..

चिंगारियाँ न डाल

चिंगारियाँ न डाल मिरे दिल के घाव में मैं ख़ुद ही जल रहा हूँ ग़मों के अलाव में |

वादे पे वो ऐतबार नहीं करते

वादे पे वो ऐतबार नहीं करते, हम जिक्र मौहब्बत सरे बाजार नहीं करते, डरता है दिल उनकी रुसवाई से, और वो सोचते हैं हम उनसे प्यार नहीं करते।।

सपना कभी साकार नहीं होता

सपना कभी साकार नहीं होता, मोहब्बत का कोई आकार नहीं होता, सब कुछ हो जाता है इस दुनियां में, मगर दोबारा किसी से प्यार नहीं होता।

रास्ता छोड़ देते हैं ….

रुकावटें तो जिंदा इंसानों के लिए हैं….। ‘अर्थी’ के लिए तो सब रास्ता छोड़ देते हैं ….।

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