कोई पटवारी वाकिफ़ है क्या तुम्हारा, अपनी ज़िन्दगी तुम्हारे नाम करवानी थी
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मुझे निकाल कर
मुझे निकाल कर वो शख़्स मेरे घर में रहा , जिस की शोहरत के लिए मैं सदा सफ़र में रहा…!
रात भर बातें करते हैं
रात भर बातें करते हैं तारे रात काटे किधर कोई तनहा…
ख़ुद अपना ही साया
ख़ुद अपना ही साया डराता है मुझे, कैसे चलूँ उजालों में बेख़ौफ़ होकर?
मिटती है भूख
मिटती है भूख इनके ही दम से जहान की ताक़त है कितनी देखिये लोगो किसान में….
ख़रीद सको न जिसको
ख़रीद सको न जिसको दौलत लूटा कर भी बिक जाता है वो तो केवल एक मुस्कान में !
कभी आती है
कभी आती है हँसी खुद पर कभी खाली जेब पर हँसी आती है|
जान निकल जाती है
टूटकर चाहना और फिर टूट जाना, बात छोटी है मगर जान निकल जाती है…..
ज़रा सी ढंग की रोटी
ज़रा सी ढंग की रोटी क्या मांग ली देश के सिपाही ने… सरकार ने तो बन्दुक ही छीन ली…
छीनकर हाथों से
छीनकर हाथों से जाम वो इस अंदाज़ से बोली, कमी क्या है इन होठों में जो तुम शराब पीते हो।