अजीब सी बस्ती में ठिकाना है मेरा। जहाँ लोग मिलते कम, झांकते ज़्यादा है।
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मुहब्बत की कोई
मुहब्बत की कोई कीमत मुकर्रर हो नही सकती है, ये जिस कीमत पे मिल जाये उसी कीमत पे सस्ती है
चलने दो जरा
चलने दो जरा आँधियाँ हकीकत की, न जाने कौन से झोंके मैं अपनो के मुखौटे उड़ जाये।
रोज़ बदलो न इनको
रोज़ बदलो न इनको यूँ लिबासों की तरह, ये रिश्तें हैं जनाब बाज़ारों में कहाँ मिलते हैं।
ख्वाहिशों की चादर
ख्वाहिशों की चादर तो कब की तार तार हो चुकी… देखते हैं वक़्त की रफूगिरि क्या कमाल करती हैं…
करीब ना होते हुए भी
करीब ना होते हुए भी करीब पाओगे हमें क्योंकि… एहसास बन के दिल में उतरना आदत है मेरी….
बदन के घाव
बदन के घाव दिखाकर जो अपना पेट भरता है, सुना है वो भिखारी जख्म भर जाने से डरता है।
ख़त्म हो भी तो कैसे
ख़त्म हो भी तो कैसे, ये मंजिलो की आरजू, ये रास्ते है के रुकते नहीं, और इक हम के झुकते नही।
न छेड़ क़िस्सा वो
न छेड़ क़िस्सा वो उल्फत का, बड़ी लम्बी कहानी है ! मैं ज़िंदगी से नहीं हारा, बस किसी पे एतबार बहुत था ..
मत पूछो कि
मत पूछो कि मै यह अल्फाज कहाँ से लाता हूँ, उसकी यादों का खजाना है, लुटाऐ जा रहा हूँ मैं ।