फिर इशक का जुनूं

फिर इशक का जुनूं चढ़ रहा है सिर पे, मयखाने से कह दो दरवाजा खुला रखे….

कहीं किसी रोज यूँ

कहीं किसी रोज यूँ भी होता, हमारी हालत तुम्हारी होती जो रात हम ने गुजारी मर के, वो रात तुम ने गुजारी होती…

कुछ तो सोचा होगा

कुछ तो सोचा होगा कायनात ने तेरे-मेरे रिश्ते पर… वरना इतनी बड़ी दुनिया में तुझसे ही बात क्यों होती….

हम रोने पे आ जाएँ

हम रोने पे आ जाएँ तो दरिया ही बहा दें, शबनम की तरह से हमें रोना नहीं आता…

कुछ कम है।

मुक्कम्मल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है।

अख़बार का भी

अख़बार का भी अजीब खेल है, सुबह अमीरों की चाय का मजा बढाती है, रात में गरीबों के खाने की थाली बन जाती है।

ज़िन्दगी को समझने में

ज़िन्दगी को समझने में वक़्त न गुज़ार, थोड़ी जी ले पूरी समझ में आ जायेगी।

मैं ख्वाहिश बन जाऊँ

मैं ख्वाहिश बन जाऊँ और तू रूह की तलब बस यूँ ही जी लेंगे दोनों मोहब्बत बनकर.

जहाँ कुछ दर्द

जहाँ कुछ दर्द का मज़कूर होगा… हमारा शेर भी मशहूर होगा..

कभी यूँ भी

कभी यूँ भी तो हो,, परियों की महफ़िल हो कोई तुम्हारी बात हो और तुम आओ

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