अगर तुम दर्द की भाषा ही समझते हो तो कानो से नही बल्कि आँखों से मेरी आँखों में झाँखो और देखो कितनी मुश्किल से संभाला है समंदर मैंने वो जिसको बहा कर तुमने हमदर्दी का मरहम पाया और मैंने रोक कर …. बेदर्द होने का इलज़ाम!!!
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हजारो अश्क मेरे
हजारो अश्क मेरे आँखो की हिरासत में थे फिर तेरी याद आई और उन्हें जमानत मिल गई
मैं भी ज़रूरत में
ज़िन्दगी हो तो कई काम निकल आते है याद आऊँगा कभी मैं भी ज़रूरत में उसे
अपने बढ़ा रहा था
वो उम्र कम कर रहा था मेरी मैं साल अपने बढ़ा रहा था
सिंदूर के लिए
मांग इतना खून मेरे ज़ख़्मी ‘दिल से, की बूँद भी न रहे तेरे ‘सिंदूर के लिए..!!
ख़ुशी मिली थी
कल ख़ुशी मिली थी जल्दी में थी, रुकी नहीं
इक इश्क़ का ग़म
इक इश्क़ का ग़म आफ़त और उस पे ये दिल आफ़त या ग़म न दिया होता, या दिल न दिया होता
तू मोहब्बत से
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल…… हार जाने का हौसला है मुझे !
ज्यादा सफाई ना दे
खतावार समझेगी दुनिया तुझे .. अब इतनी भी ज्यादा सफाई ना दे
सो जाता है
जिस्म फिर भी थक हार कर सो जाता है …. ज़हन का भी कोई बिस्तर होना चाहिए …