तेरे इश्क में

तेरे इश्क में उन ऊंचाइयों को पा लिया हमने । की आँसू पलकों तक आते तो है , पर गिरते नहीं ।।

दिल-ए-वहशी

दिल-ए-वहशी को ख़्वाहिश है तुम्हारे दर पे आने की दिवाना है लेकिन बात करता है ठिकाने की |

अभी तो मेरी ज़रुरत है

अभी तो मेरी ज़रुरत है मेरे बच्चों को बड़े हुए तो ये ख़ुद इन्तिज़ाम कर लेंगे इसी ख़याल से हमने ये पेड़ बोया है हमारे साथ परिंदे क़याम कर लेंगे |

किसी को दे के दिल

किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह में ज़बाँ क्यूँ हो |

अपने ही तोड देते हैं

अपने ही तोड देते हैं यहां वरना गैरौ को क्या पता कि दिल की दीवार कहा से कमजोर है…

न जख्म भरे

न जख्म भरे ; न शराब सहारा हुई. न वो वापस लौटी ….ना मोहब्बत दोबारा हुई….!!

थोडी ही सही

थोडी ही सही पर बातो की तेरी जो धूप ना पडे मुझ पर तो धुन्धदला-सा जाता हू मैं..

वो अनजान चला है

वो अनजान चला है, जन्नत को पाऩे के खातिर, बेखबर को इत्तला कर दो कि माँ-बाप घर पर ही है|

मतलब भी नही जानता

मैं मतलब का मतलब भी नही जानता… वो मतलब से मतलब रखती है…

कुछ लुत्फ़ आ रहा है

कुछ लुत्फ़ आ रहा है– मुझे दर्दे–इश्क में, जो गम दिया है तूने वो राहत से कम नहीं|

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