मैं तुम्हारे हिस्से की

मैं तुम्हारे हिस्से की बेवफाई करूँगा… तुम मेरे हिस्से की शायरी करना…।।

खेल जब दोबारा शुरु होगा

खेल जब दोबारा शुरु होगा तो मोहरे हम वही से उठाएगें जहॉ इस वकत थरे है!

मुझे मालूम है

मुझे मालूम है मेरी किस्मत में नहीं हो तुम लेकिन ..। मेरे मुकद्दर से छुपकर मेरे एक बार हो जाओ ..।

काश वो आकर

काश वो आकर कहे, एक दिन मोहब्बत से……!! ये बेसब्री कैसी ? तेरी हूँ, तसल्ली रख…!!

मेरे हाथों को मालूम है

मेरे हाथों को मालूम है तुम्हारे गिरेबानों का पता, चाहूं तो पकड़ लूं पर मजा आता है माफ करने में ।

इक ख़्वाब हो

इक ख़्वाब हो के रह गई है रस्म-ऐ-मोहब्बत… इक वहम सा है अब.. मेरे साथ तुम भी थे….

छोटी सी बात पे

छोटी सी बात पे ख़ुश होना मुझे आता था.. पर बड़ी बात पे चुप रहना तुम्ही से सीखा..

ये आशकी तुझसे शुरू

ये आशकी तुझसे शुरू तुझपे खत्म ये शायरी तूझसै शुरू तूझपै खत्म तैरै लीए ही सासैं मिली है तेरे लीए ही लीया है जन्म यै जिदंगी तुझसै शूरू तुझपै खत्म |

कल अचानक देखा

कल अचानक देखा तरसी निग़ाहों को किताबे आज भी छाती से लग के सोना चाहती है |

जब भी ग़ैरों की

जब भी ग़ैरों की इनायत देखी हम को अपनों के सितम याद आए|

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