तू वैसी ही है

तू वैसी ही है जैसा मैं चाहता हूँ… बस.. मुझे वैसा बना दे जैसा तू चाहती है…..

धीरे धीरे बहुत

धीरे धीरे बहुत कुछ बदल रहा है… लोग भी…रिश्ते भी…और कभी कभी हम खुद भी….

हमने दिया है

हमने दिया है, लहू उजालों को. हमारा क़र्ज़ है इस दौर के सवेरों पर

मत दो मुझे

मत दो मुझे खैरात उजालों की…… अब खुद को सूरज बना चुका हूं मैं..

तुम दर्द की भाषा

अगर तुम दर्द की भाषा ही समझते हो तो कानो से नही बल्कि आँखों से मेरी आँखों में झाँखो और देखो कितनी मुश्किल से संभाला है समंदर मैंने वो जिसको बहा कर तुमने हमदर्दी का मरहम पाया और मैंने रोक कर …. बेदर्द होने का इलज़ाम!!!

हजारो अश्क मेरे

हजारो अश्क मेरे आँखो की हिरासत में थे फिर तेरी याद आई और उन्हें जमानत मिल गई

मैं भी ज़रूरत में

ज़िन्दगी हो तो कई काम निकल आते है याद आऊँगा कभी मैं भी ज़रूरत में उसे

अपने बढ़ा रहा था

वो उम्र कम कर रहा था मेरी मैं साल अपने बढ़ा रहा था

सिंदूर के लिए

मांग इतना खून मेरे ज़ख़्मी ‘दिल से, की बूँद भी न रहे तेरे ‘सिंदूर के लिए..!!

ख़ुशी मिली थी

कल ख़ुशी मिली थी जल्दी में थी, रुकी नहीं

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