अनपढ़ बन्दा हूँ

अनपढ़ बन्दा हूँ मोहतरमा, तेरे सिवा कुछ आता ही नही…..!!

उङती हुयी धुल

उङती हुयी धुल सी तुम्हारी यादें ले आती है पानी आँखो में |

तेरी हसरतें भी ….

तेरी हसरतें भी ……. आ बसीं आखिर, मेरी ख्वाहिशों की ……. यतीम कहानी में

शायरी भी एक

शायरी भी एक मीठा जुल्म है,,, करते रहो या फिर पढ़ते रहो…

तन्हा उठा लूँ

तन्हा उठा लूँ मैं भी ज़रा लुत्फ़-ए-गुमरही,,,,, ऐ रहनुमा मुझे मेंरी क़िस्मत पे छोड़ दे….!!

मेरे जज़्बात आँसुओं वाले

मेरे जज़्बात आँसुओं वाले,,,,, शेर सब हिचकियों से लिखता हूँ….!!

आज नही तो कल

आज नही तो कल ये एहसास हो ही जायेगा…. कि “नसीब वालो” को ही मिलते है फिकर करने वाले|

मकसद पहचान लेते है

शहद जुबा के मकसद पहचान लेते है , गैरजरूरी तवज्जो की वजह जान लेते है । हमे मासूम , बेखबर , नादां समझते है वो , और हम रिश्तों को “बंदगी”

चलो कुछ बात करते हैं

चलो कुछ बात करते हैं, बिन बोले बिन सुने एक तन्हा मुलाक़ात करते हैं|

पैसों के लिये

पैसों के लिये नाता तोड़ने वाले पैसा छुपाने के लिये रिश्तेदार ढूँढ रहे है |

Exit mobile version