हम भी फूलों कि तरह

हम भी फूलों कि तरह अपनी आदत से मजबूर है तोड़ने वाले को भी खूशबू की सजा देते है…!!

ऐ खुदा अगर

ऐ खुदा अगर तेरे पेन की स्याही खत्म हो गयी हो तो मेरा लहू लेले बस….यु कहानिया अधूरी न लिखा कर.

ज़ख़्म दे कर

ज़ख़्म दे कर ना पूछा करो, दर्द की शिद्दत, दर्द तो दर्द होता हैं, थोड़ा क्या, ज्यादा क्या

कभी जरूरत पड़े तो

कभी जरूरत पड़े तो आवाज दे देना हमें, मैं गुजरा हुआ वक्त नहीं जो वापस न आ सकूँ”…

बंद कर दिए हैं

बंद कर दिए हैं हम ने दरवाज़े इश्क के, पर तेरी याद है कि दरारों से भी आ जाती है|

कोई कितना भी

कोई कितना भी हिम्मत वाला क्युँ ना हो “साहिब”… रुला ही देती है किसी खास “इंसान” की कमी कभी_कभी …………….

टूट कर भी

टूट कर भी कम्बख्त धड़कता रहता है… मैने इस दुनिया मैं दिल सा कोई वफादार नहीं देखा..

एक बार भूल से

एक बार भूल से ही कहा होता की हम किसी और के भी है, खुदा कसम हम तेरे सायें से भी दूर रहते…

सजा देनी हमे भी

सजा देनी हमे भी आती है ‪… ओ बेखबर‬, पर तू तकलीफ से गुज़रे, ये हमे मंजूर नहीं

बड़ी अजीब सी

बड़ी अजीब सी मोहब्बत थी तुम्हारी,,,,,पहले पागल किया,,,,,,, फिर पागल कहा…फिर पागल समझ कर छोड़ दिया….

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