बचपन बड़ा होकर

बचपन — बड़ा होकर पायलट बनूँगा, डॉक्टर बनूँगा या इंजीनियर बनूँगा…. जवानी — “अरे भाई वो चपरासी वाला फॉर्म निकला की नही अभी तक

एक ख़्वाब ने

एक ख़्वाब ने आँखे खोली हैं…. क्या मोड़ आया है कहानी मैं….. वो भीग रही है बारिश मैं……….. और आग लगी है पानी मैं……!

एक सूत्र में बँधी

झाड़ू, जब तक एक सूत्र में बँधी होती है, तब तक वह “कचरा” साफ करती है। लेकिन वही झाड़ू जब बिखर जाती है तो खुद कचरा हो जाती है।

तेरा ऐ दिल

माफी चाहता हूँ गुनेहगार हूँ तेरा ऐ दिल, तुझे उसके हवाले किया जिसे तेरी कदर नहीं

ढूंढ रहे हो

कमियां तो पहले भी थीं मुझमें.. अब जो बहाना ढूंढ रहे हो तो वो अलग बात है.. !!

यह समझ पाओ

किसी मासूम बच्चे की तबस्सुम मेँ उतर जाओ, तो शायद यह समझ पाओ खुदा ऐसा भी होता है…

ऐ दिल मुझसे

ऐ दिल मुझसे बहस ना कर अब चुप भी हो जा,, उसके बिना साल गुजर गया दिसंबर और गुज़र जाने दे

मिन्नतें करू मै

क्युं….उसको मनाने की मिन्नतें करू मै.. मुझे उस से मोहब्बत है….कोई मतलब तो नही..!!

किसी ना किसी

सीखा जाता है हर हुनर, किसी ना किसी उस्ताद से, मगर जिंदगी के सबक जमाने की ठोकरें देती हैं।

जिंदगी में होते है

कुछ ऐसे हादसे भी जिंदगी में होते है…. ऐ दोस्त.. इंसान बच तो जाता है पर जिंदा नहीं रहता…..।।।।

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