वो उम्र कम कर रहा था मेरी मैं साल अपने बढ़ा रहा था
Tag: व्यंग्य
ख़ुशी मिली थी
कल ख़ुशी मिली थी जल्दी में थी, रुकी नहीं
दिल न दिया होता
इक इश्क़ का ग़म आफ़त और उस पे ये दिल आफ़त या ग़म न दिया होता, या दिल न दिया होता
कोई चाल तो चल
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल…… हार जाने का हौसला है मुझे !
ज्यादा सफाई ना दे
खतावार समझेगी दुनिया तुझे .. अब इतनी भी ज्यादा सफाई ना दे
सो जाता है
जिस्म फिर भी थक हार कर सो जाता है …. ज़हन का भी कोई बिस्तर होना चाहिए …
चीर के ज़मीन को
चीर के ज़मीन को मैं उम्मीदें बोता हूँ मैं किसान हूं चैन से कहाँ सोता हूँ
कोई घर नहीं
इस शहर में मजदूर जैसा दर बदर कोई नहीं सैंकड़ों घर बना दिये पर उसका कोई घर नहीं|
किताबों का बस फ़लसफ़ा
वो सर को झुकाना ऑ तस्लीम कहना, किताबों का बस फ़लसफ़ा होगये हैं!
मजदूर का बदन
हनत करते थकता नहीं मजदूर का बदन, और अमीर नोट भी गिनते है तो मशीन लगाकर…