बहुत जलील था वो दिन भी, मेरे लिए…. उधर मोहब्बत किसी और की होने जा रही थी….. इधर लोग कह रहे थे. . .. . . .. . भाई एक “पूड़ी” और देना अच्छी नरम वाली।।।
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कारवां-ए-ज़िन्दगी
कारवां-ए-ज़िन्दगी हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं.. ये किया नहीं, वो हुआ नहीं, ये मिला नहीं, वो रहा नहीं !!
सूरत सांवली हो
सूरत सांवली हो….. या चाँद सी..! बेटियाँ मां बाप के लिए ‘परी’ ही होती है..!
मुहब्बत ख़ूबसूरत होगी
मुहब्बत ख़ूबसूरत होगी किसी और दुनियाँ में । इधर तो हम पर जो गुज़री है हम ही जानते हैं ।।
रो रहे थे
रो रहे थे सब तो मैं भी फूट कर रोने लगा वरना मुझको बेटियों की रुख़सती अच्छी लगी
देखकर सोचा तो
देखकर सोचा तो पाया फासला ही फासला और सोचकर देखा तुम मेरे बहुत करीब थे
अंदाज़ ऐ जुदा
वो जब भी मिलता है अंदाज़ ऐ जुदा होता है चाँद सौ बार भी निकले तो नया होता है
उतरते हो क़लम से
लिखता हूँ तो तुम ही उतरते हो क़लम से.. पढ़ता हूँ तो लहजा भी तुम आवाज़ भी तुम..
हर बार तोडा दिल
हर बार तोडा दिल तूने इस क़दर संग-दिल गर जोड़ता टुकड़े तो ताजमहल बनता
हाथ मेरा देख
हाथ मेरा देख कर ये मशवरा उसने दिया.. कुछ लकीरों को मिटाना अब ज़रूरी हो गया