चाहूंगा मैं तुझे

चाहूंगा मैं तुझे साँझ सवेरे !! क्योंकि दोपहर को मुझे बैंक की लाइन में लगना है।

पाया भी उन को

पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी हो रहे, इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं…

उम्र भर ख़्वाबों की

उम्र भर ख़्वाबों की मंज़िल का सफ़र जारी रहा, ज़िंदगी भर तजरबों के ज़ख़्म काम आते रहे…

हाथ पकड़ कर

हाथ पकड़ कर रोक लेते अगर,तुझपर ज़रा भी ज़ोर होता मेरा, ना रोते हम यूँ तेरे लिये, अगर हमारी ज़िन्दगी में तेरे सिवा कोई ओर होता !

इश्क की हिमाकत

इश्क की हिमाकत जो उनसे कर बैठे यूँ ही हम खुदसे बिछड़ बैठे !!!

सने ऐसी चाल चली

सने ऐसी चाल चली के मेरी मात यकीनी थी, फिर अपनी अपनी किस्मत थी, हारी मैं, पछताया वो…..!!!!!!

कोई उम्मीद बर नहीं

कोई उम्मीद बर नहीं आती नयी करेंसी नज़र नहीं आती हम वहाँ हैं जहाँ से कैशियर को भी लाइन हमारी नज़र नहीं आती आगे आती थी खाली जेब पर हँसी अब किसी बात पर नहीं आती

ये तो कहिए

ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा, ये जो कह दूं के आप पर मरता हूं मैं।।

रात हुई है

रात हुई है चाँद ज़मीं पर हौले-हौले उतरा है…..!! तुम भी आ जाते तो सारा नूर मुकम्मल हो जाता…..!!

शाख़ पर रह कर

शाख़ पर रह कर कहाँ मुमकिन था मेरा ये सफ़र, अब हवा ने अपने हाथों में सँभाला है मुझे…

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