शिकवा तकदीर का

शिकवा तकदीर का, ना शिकायत अच्छी, वो जिस हाल में रखे, वही ज़िंदगी अच्छी

मैं रुठा जो

मैं रुठा जो तुमसे तुमने हमें मनाया भी नहीं , अपनी मोहब्बत का कुछ हक जताया भी नहीं !!

तौबा तो कर चुके हैं

मुहब्बत से तौबा तो कर चुके हैं मगर थोडा जहर ला के दे दो आज तबियत उदास है|

कोशिश करता हूँ

कोशिश करता हूँ लिखने की,तुम्हारी मुस्कान लिखी नहीं जाती..। मैं तो अदना सा शायर हूँ, ये दास्तान लिखी नहीं जाती..।

अभी दिन की कशमक़श

अभी दिन की कशमक़श से निकल भी न पाये थे, जाने कहाँ से फिर ये शाम आ गई

झूठ बोलने का रियाज़

झूठ बोलने का रियाज़ करता हूँ, सुबह और शाम में; सच बोलने की अदा ने हमसे कई अज़ीज़ छीन लिए।

गुलाम हुआ है

गुलाम हुआ है इंसान कुछ इस कदर रिश्ते मिलने को तरसते है …..

आये हो आँखों में

आये हो आँखों में तो कुछ देर तो ठहर जाओ, एक उम्र लग जाती है एक ख्वाब सजाने में.

तुम अगर चाहो तो

तुम अगर चाहो तो पूछ लिया करो खैरियत हमारी.. कुछ हक़ दिए नही जाते ले लिए जाते है ..

कोशिश तो होती है

कोशिश तो होती है की तेरी हर ख्वाहिश पूरी करूँ, पर डर लगता है की तू ख्वाहिश में मुझसे जुदाई ना माँग ले !!

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