पुरानी होकर भी खाश होती जा रही है, मोहब्बत बेशरम है, बेहिसाब होती जा रही है..
Tag: कविता
कुछ इस क़दर
कुछ इस क़दर दिलशिकन थे मुहब्बत के हादसे। हम ज़िन्दगी से फिर कोई शिकवा न कर सके।।
वो दुआएं काश
वो दुआएं काश मैने दीवारों से मांगी होती, ऐ खुदा.. सुना है कि उनके तो कान होते है!!
एक मुनासिब सा
एक मुनासिब सा नाम रख दो तुम ….. रोज जिदंगी पूछती हैं रिश्ता तेरा मेरा ….
मैं अगर खत्म भी हो जाऊँ
मैं अगर खत्म भी हो जाऊँ इस साल की तरह… तुम मेरे बाद भी संवरते रहना नए साल की तरह…!!!
हमें ए दिल कहीं ले
हमें ए दिल कहीं ले चल … बड़ा तेरा करम होगा हमारे दम से है हर गम …न होंगे हम और ना गम होगा….
दिल से निकालो
दिल से निकालो तो मान जाऊ. नजर-अन्दाज करना कोई कमाल तो नही !
कितना खुशनुमा होगा
कितना खुशनुमा होगा वो मेरे इँतज़ार का मंजर भी… जब ठुकराने वाले मुझे फिर से पाने के लिये आँसु बहायेंगे…!!!
तुम्हारी ये आम सी
तुम्हारी ये आम सी बातें,…. मुझे बहुत ख़ास लगती है……!!
कुछ कदम जो
कुछ कदम जो साथ चल रहे थे, दरअसल वो चल नहीं छल रहे थे !!