तारीफ़ करें खुदा

औकात क्या जो लिखूं नात आका की शान में। खुद तारीफ़ करें खुदा मुस्तफ़ा की कुरान में। और कीड़े पड़ेंगे देखना तुम उसकी ज़बान में। गुस्ताख़ी करता हैं जो मेरे आका की शान मे।

नतीजो को इनाम

दुनिया सिर्फ नतीजो को इनाम देती कोशिशो को नही.

माँ-बाप घर पर है

वो अनजान चला है जन्नत को पाने की खातिर बेख़बर को इत्तला कर दो की माँ-बाप घर पर है|

दुनिया तो वैसे

दिल बङा रखें.. दुनिया तो वैसे भी ‘बहुत छोटी’ है…!

मुझे भी कुछ

मुझे भी कुछ गहरा सा..!! . . ऐ बेवफा . . जिसे कोई भी पढे., समझ बस तुम सको..!!

इश्क़ मे उनके

इश्क़ मे उनके जान देके, हम भी दिखा देते मगर, तभी याद आया की, मोहब्बत तो अंधी होती

जिन्दगी की जेब

बार बार रफू करता रहता हूँ जिन्दगी की जेब… कम्बखत फिर भी निकल जाते हैं खुशियों के कुछ लम्हें… ज़िन्दगी में सारा झगड़ा ही ख़्वाहिशों का है….. ना तो किसी को गम चाहिए और, ना ही किसी को कम चाहिए….!!!

वो अल्फाज़ जिसे

जिंदगी की थकान में गुम हो गया, वो अल्फाज़ जिसे “सुकून” कहते है…

Inteha ye hai

Saas ko but, aur but ko devta karta hai ishk Inteha ye hai ke bande ko Khuda karta hai ishk

बस तुम याद

मंजर भी बेनूर थे और फिजायें भी बेरंग थी , बस तुम याद आए और मौसम सुहाना हो गया..

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