महफिल भी सजी है सनम भी… हम कन्फ्युज हैं… इश्क करें या शायरी।
Tag: व्यंग्य
निकाल के जिस्म से
निकाल के जिस्म से जो अपनी जान देता है… बङा ही मजबूत है वो पिता जो कन्या दान देता है !!
हमेशा बादशाह समझा
मैंने अपने आप को हमेशा बादशाह समझा, एहसास तब हुआ जब तुझे माँगा फकीरों की तरह।
किसी दिन देख कर
किसी दिन देख कर मौका मुक़द्दर मार डालेगा , किनारा हूँ मैं जिसका वो समंदर मार डालेगा. इबादत में नहीं लगता है दिल ये सोच कर मेरा, जिसे में पूजता हूँ वो ही पत्थर मार डालेगा . लड़ा मैं जंगे मैदां उम्र भर तलवार के दम पर, कहाँ मालूम था छोटा सा नश्तर मार डालेगा.… Continue reading किसी दिन देख कर
मोहब्बत करते हैं
हम भी मोहब्बत करते हैं पर बोलते नही.. क्योकि रिश्ते निभाते है तौलते नही.
तेरे हुस्न पर
तेरे हुस्न पर तारीफ भरी, एक किताब लिख देता काश की तेरी वफ़ा भी , तेरे हुस्न के बराबर होती
ना पैगाम ना दुआ
ना पैगाम ना दुआ कोई, इस कदर हमसे ख़फ़ा है कोई ।
जिंदगी में सबसे ज्यादा
जिंदगी में सबसे ज्यादा दर्द दिल टूटने पर नहीं, यकीन टूटने पर होता है.!!
तुम्हारे न होने से
तुम्हारे न होने से कुछ भी नहीं बदला मुझमें बस पहले जहाँ दिल होता था, वहाँ अब दर्द होता है…
पहना रहे हो
पहना रहे हो क्यूँ मुझे तुम काँच का लिबास…. क्या बच गया है फिर कोई पत्थर तुम्हारे पास