जब तक “सत्य” घर से बाहर निकलता है. तब तक “झूठ” आधी दुनिया घूम लेता है”
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कांटे वाली तार पे
कांटे वाली तार पे किसने गीले कपड़े टांगे हैं खून टपकता रहता है और नाली में बह जाता है क्यूँ इस फ़ौजी की बेवा हर रोज़ ये वर्दी धोती है
वादो से बंधी जंजीर
वादो से बंधी जंजीर थी जो तोड दी मैँने… अब से जल्दी सोया करेँगेँ, मोहब्बत छोड दी मैँने…!!!
वक़्त भरा जाता है
नाप के, वक़्त भरा जाता है,हर रेत घड़ी में इक तरफ़ ख़ाली हो जब फिर से उल्ट देते हैं उसको उम्र जब ख़तम हो,क्या मुझ को वो उल्टा नहीं सकता
कुछ लोग यूँ ही
कुछ लोग यूँ ही शहर में हमसे भी ख़फा हैं हर एक से अपनी भी तबीयत नहीं मिलती
कच्ची-सी सरहद
मैं रहता इस तरफ़ हूँ यार की दीवार के लेकिन मेरा साया अभी दीवार के उस पार गिरता है बड़ी कच्ची-सी सरहद एक अपने जिस्मों-जां की हैं
करो यकीं तो बताऊँ
करो यकीं तो बताऊँ तुम्हे — बहुत ख़ास, बहुत खास, बहुत खास हो तुम —-!
दीवाने की हालत
“हिज्र में दीवाने की हालत कुछ ऐसी हुई.. सूरत को देख कर खुद तस्वीर रोने लगी..!”
सामने आए मेरे
सामने आए मेरे, देखा मुझे , बात भी की मुस्कुराये भी, पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर कल का अख़बार था, बस देख लिया, रख भी दिया
दुआ नहीं मांगी थी
दुआ को हाथ उठाते हुए लरजता हूँ कभी दुआ नहीं मांगी थी माँ के होते हुए