तुम जड़ पकड़ते

कभी तुम जड़ पकड़ते हो कभी शाखों को गिनते हो हवा से पूछ लो न ये शजर कितना पुराना है

यहीं रही है

यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत फकीर हो या नवाब सबको, कफन वही ढाई गज मिला है

किसी शहर के

किसी शहर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे तभी तलक ये करें बसेरा दरख्‍़त जब तक हरा भरा है

मेरी बाहों के

इश्क का तू हरफ।।जिसके चारों तरफ।।मेरी बाहों के घेरे का बने हासिया

आस्था को ठेस

आस्था को ठेस पहुंची तो लगे तुम चीखने मंदिरों में धर्म भी है कि नहीं ये तो पढो

इक इंसान को

ज़हर जो शंकर बनाये आपको तो खाइए वरना इक इंसान को विषधर न होने दीजिये

तुमको देखा तो

तुमको देखा तो फिर उसको ना देखा हमने….!! चाँद कहता रहा कई बार कि मैं चाँद हूं, मैं चाँद हूँ….!!

जिसकी बातों में दम नहीं होता

चीखता है वही सदा जिसकी बातों में दम नहीं होता

इंतजार की घङिया

इक मैँ जो, इंतजार की घङिया ;गिनता रहा……!! . इक तुम जो, आँखे चुराकर निकल गए……!!

तेरी यादें

तेरी यादें…..कांच के टुकड़े… और मेरा दिल ….नंगे पाँव..!!

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