किसी को दे के दिल

किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह में ज़बाँ क्यूँ हो |

अपने ही तोड देते हैं

अपने ही तोड देते हैं यहां वरना गैरौ को क्या पता कि दिल की दीवार कहा से कमजोर है…

न जख्म भरे

न जख्म भरे ; न शराब सहारा हुई. न वो वापस लौटी ….ना मोहब्बत दोबारा हुई….!!

थोडी ही सही

थोडी ही सही पर बातो की तेरी जो धूप ना पडे मुझ पर तो धुन्धदला-सा जाता हू मैं..

वो अनजान चला है

वो अनजान चला है, जन्नत को पाऩे के खातिर, बेखबर को इत्तला कर दो कि माँ-बाप घर पर ही है|

मतलब भी नही जानता

मैं मतलब का मतलब भी नही जानता… वो मतलब से मतलब रखती है…

कुछ लुत्फ़ आ रहा है

कुछ लुत्फ़ आ रहा है– मुझे दर्दे–इश्क में, जो गम दिया है तूने वो राहत से कम नहीं|

मौसम देख रही हो

मौसम देख रही हो, ये चाहता है के फिरसे तुमसे इश्क हो ….

कत्ल करती है मेरा

तेरी सादगी ही कत्ल करती है मेरा , क्या होगा जब सँवर के आएगी तू !

मेरा साथ दिया था

मैं तन्हाई को तन्हाई में तन्हा कैसे छोड़ दूँ. इस तन्हाई ने तन्हाई में तन्हा मेरा साथ दिया था |

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