अनजाने शहर में

अनजाने शहर में अपने मिलते है कहाँ डाली से गिरकर फूल फिर खिलते है कहाँ . . . आसमान को छूने को रोज जो निकला करे पिँजरे में कैद पंछी फिर उड़ते है कहाँ . . . दर्द मिलता है अक्सर अपनो से बिछड़कर टूट कर आईने भला फिर जुड़ते है कहाँ . . .… Continue reading अनजाने शहर में

कुछ देखा नहीं मैंने

झुकती पलकें,उभरती साँसें,मौन होंठ,बोलती आँखें,सिमटती हया और खुले बाल, सच कहूँ तुमसे बेहतर जँहा में कुछ देखा नहीं मैंने।

जिंदगी पर बस

जिंदगी पर बस इतना ही लिख पाई हूँ मैं…. बहुत “मज़बूत” रिश्तें है…कुछ लापरवाह लोगों से|

इन आँखों में

इन आँखों में, आज फिर नमी सी है… इस दिल में आज फिर तेरी कमी सी है!! नहीं भूलती वो तेरी बातें… याद आ गईं फिर,वो मुलाकातें !!!

आज भी धड़कने

आज भी धड़कने बढ़ा देता है उस पल का याद आना, मेरे जाने पर तेरा लिपट के गले लग जाना।

बहुत सोचती हूँ

बहुत सोचती हूँ एक चेहरे के बारे में, जो मुझे रोता छोड़ गया था चौबारे में।

जिसके दिल में

जिसके दिल में जितना सन्नाटा होता है, महफ़िल में उसकी आवाज़ सबसे ज़ादा गूंजती है..

मुझ को मालूम है

मुझ को मालूम है सच ज़हर लगे है सब को बोल सकता हूँ मगर होंट सिए बैठा हूँ..

शायद हमें समझ लोगे

करीब आओगे, तो शायद हमें समझ लोगे, ये फासले, तो ग़लतफ़हमियां बढ़ाते हैं|

तुम सिर्फ वो जानते हो

दरअसल तुम सिर्फ वो जानते हो…जो मेरे लफ़्ज़ कहते हैं. मेरी हिचक , अफसोस और तलब तो बेजुबान हैं…

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