कागज़ कलम मैं

कागज़ कलम मैं तकिये के पास रखता हूँ, दिन में वक्त नहीं मिलता,मैं तुम्हें नींद में लिखता हूँ..

हम उसके बिन हो गये है

हम उसके बिन हो गये है सुनसान से, जैसे अर्थी उठ गयी हो किसी मकान से !!

तुम रूक के नहीं

तुम रूक के नहीं मिलते हम झुक के नहीं मिलते मालूम ये होता है कुछ तुम भी हो कुछ हम भी|

मिट्टी का बना हूँ

मिट्टी का बना हूँ महक उठूंगा… बस तू एक बार बेइँतहा ‘बरस’ के तो देख……

कसक पुराने ज़माने की

कसक पुराने ज़माने की साथ लाया है, तिरा ख़याल कि बरसों के बाद आया है !!

मैं अपने शहर के

मैं अपने शहर के लोगों से ख़ूब वाकिफ़ हूँ हरेक हाथ का पत्थर मेरी निगाह में है|

जीत कर मुस्कुराए तो

जीत कर मुस्कुराए तो क्या मुस्कुराए हारकर मुस्कुराए तो जिंदगी है….

सौदेबाजी का हुनर

सौदेबाजी का हुनर कोई उनसे सीखे, गालों का तिल दिखाकर सीने का दिल ले गये !

गिरा दे जितना पानी

गिरा दे जितना पानी तेरे पास है बादल.. कयामत तक ये प्यास नही बुझने वाली ..

ग़ज़ल भी मेरी है

ग़ज़ल भी मेरी है पेशकश भी मेरी है मगर लफ्ज़ो में छुप के जो बैठी है वो बात तेरी है…

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