हासिल होने की

हासिल होने की उम्मिद ना-उम्मिद है, फिर भी दिल वफा करता रहा सिर्फ तेरे लब्ज़ों के दम पर।

मुझे पता है

मुझे पता है मेरी खुद्दारी तुम्हे खो देगी में भी क्या करू मुझे मांगने की आदत नही

आँखों में थी

खूबसूरती देखने वाले की आँखों में थी । आईना यूँ ही करता रहा ख़ुद पे ग़ुरूर उम्र भर ।

रहती है छाँव

रहती है छाँव क्यों मेरे आँगन में थोड़ी देर, इस जुर्म पर पड़ोस का वो पेड़ कट गया

गुज़ारी न जा सकी

जो गुज़ारी न जा सकी हम से हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है ………..

आख़िरी हदों में

इश्क़ की आख़िरी हदों में हूँ राख़ हूँ और जल नहीं सकता !

आईना देख कर

आईना देख कर वो,मुस्कुरा के बोली…… बे-मौत मरेंगे…… मुझ पर मरने वाले…

कितना मुश्किल है

कितना मुश्किल है ज़िन्दगी का ये सफ़र; खुदा ने मरना हराम किया, लोगों ने जीना

बदलो के बीच

ना जाने बदलो के बीच, कैसी साजिश हुयी ….. मेरा घर था मिटटी का, मेरे ही घर बारिश हुयी

मोहब्बत का नतीजा

मोहब्बत का नतीजा दुनिया में हमने बुरा देखा; जिनका दावा था वफ़ा का उन्हें भी हमने बेवफा देखा।

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